“द ताज स्टोरी” फिल्म जो आज रिलीज़ होने जा रही है
आगरा: शुक्रवार 31 अक्टूबर 2025
एक फिल्म जिसने फिर एक नई बहस को छेड़ दिया है, फिल्म का कथानक बड़ा दिलचस्प है जिसमें एक गाइड विष्णु दास ने कोर्ट में एक मुकदमा दायर किया जिसमें उसने ताज महल को हिन्दू मंदिर होने का दावा किया है।

फिल्म का कोर्ट सीन भी जबरदस्त है जहां दो जजों की बेंच इस केस की सुनवाई करती है। गाइड विष्णु दास कई सबूत पेश करता है जिनमें उसका तर्क है कि ताजमहल हिन्दू मंदिर था। विपक्ष के वकील का किरदार भी लाजवाब है। विष्णु दास और उसके परिवार पर हमले होते हैं, मुंह पर कालिख पोती जाती है। उस पर दवाब बनाया जाता है कि वो केस वापस ले ले।

फिल्म की कहानी बड़ी रोचक है जिसका क्लाइमैक्स तो फिल्म देखने के बाद ही पता चल सकेगा। मगर फिल्म के ट्रेलर ने ही तहलका मचा दिया है। फिल्म में गाइड विष्णु दास का मुख्य किरदार परेश रावल ने निभाया है, जिसमें उन्होंने जबरदस्त एक्टिंग की है।

कुल मिलाकर फिल्म दर्शकों को बेहद पसंद आएगी, क्योंकि इस फिल्म ने फिर से एक सवाल को हवा दी है, जिसमें ताजमहल को हिन्दू मंदिर होने का दावा फिर से जिंदा कर दिया है।

जहां तक दावों का सवाल है, तो अभी तक कई बार अदालत में ये दावा किया गया है कि, ताजमहल हिन्दू मंदिर था। लेकिन अभी तक न्यायालय में यह पूरी तरह से सिद्ध नहीं हो पाया है कि क्या ताजमहाल हिन्दू मंदिर है।

ताजमहल के हिंदू मंदिर होने को लेकर कई कानूनी चुनौतियों को भारतीय अदालतों ने खारिज कर दिया है, जिसमें इसके उलट ऐतिहासिक और कानूनी सबूत दिए गए हैं। सुप्रीम कोर्ट और आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ़ इंडिया (ASI) दोनों ने इस दावे को खारिज कर दिया है कि ताजमहल असल में “तेजो महालय” नाम का एक हिंदू मंदिर था, और कहा कि इस दावे को सपोर्ट करने के लिए कोई सबूत नहीं है और यह कन्फर्म किया कि यह एक मुस्लिम मकबरा है।

2015 की पिटीशन में वकीलों के एक ग्रुप ने आगरा की एक कोर्ट में केस फाइल किया था, जिसमें दावा किया गया कि ताजमहल एक हिंदू मंदिर था और हिंदुओं के लिए पूजा का अधिकार मांगा गया था। ASI ने इस पिटीशन का जवाब कोर्ट में यह कहकर दिया कि ताजमहल एक मुस्लिम मकबरा था और इसके कभी मंदिर होने का कोई सबूत नहीं है।
2017 की पिटीशन में सेंट्रल इन्फॉर्मेशन कमीशन (CIC) ने यूनियन कल्चर मिनिस्ट्री को ताजमहल के ओरिजिन पर अपना स्टैंड साफ करने का निर्देश दिया, जिसके बाद ASI ने फिर से कहा कि ताजमहल एक मकबरा था और यह दावा कि यह एक मंदिर था, गलत जानकारी पर आधारित था।

2022 में सुप्रीम कोर्ट ने ताजमहल के बंद कमरों को खोलने की मांग वाली याचिका को “पब्लिसिटी इंटरेस्ट लिटिगेशन” कहकर खारिज कर दिया। कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के पहले खारिज किए गए याचिका को बरकरार रखा, जो इस दावे पर आधारित थी कि स्मारक एक पुराना शिव मंदिर था।
ASI का रुख: ASI ने कोर्ट में लगातार कहा है कि ताजमहल एक मकबरा है और ऐसा कोई ऐतिहासिक सबूत नहीं है जो यह बताए कि यह मूल रूप से एक हिंदू मंदिर था। उन्होंने कहा है कि यह ज़मीन राजा जय सिंह से चार हवेलियों के बदले में ली गई थी, जैसा कि ऐतिहासिक रिकॉर्ड में दर्ज है।
विशेष संवाददाता









