नेपाल: 11 सितंबर 2025
भारत के पड़ोसी देशों में जो तख्तापलट की घटनाएं हो रही हैं यह भारत के लिए शुभ संकेत नहीं हैं। पहले श्रीलंका, उसके बाद बांग्लादेश और अब नेपाल में हुई तख्तापलट की घटनाओं के बाद भारत के लिए यह गंभीर चिंता का विषय है। पड़ोस के घर में यदि आग लगी हो तो अपने घर पर उसके ताप का असर होना लाज़मी है। अब ये हमारी जिम्मेदारी है कि उस आग से अपने घर को कैसे बचा कर रखा जाय।
इन तीनों पड़ोसी देशों में अस्थिरता की कई घटनाएँ हुई हैं, जिसके कारण शासन का पतन हुआ है और उनके नेता भाग गए हैं। नेपाल में जो हो रहा है वह भारत के लिए स्वस्थ संकेत नहीं है। बांग्लादेश में जो तख्तापलट की घटना हुई थी, उसके बाद आज तक, भारत और बांग्लादेश के कूटनीतिक रिश्तों में सुधार नहीं हो पाया और उसका मुख्य कारण वो विदेशी भारत विरोधी ताकतें हैं, जिन्होंने वहां तख्तापलट की चिंगारी को हवा दी।

नेपाल में तख्तापलट की जो घटना हुई है, ये घटना अचानक नहीं हुई, सब कुछ पूर्व नियोजित लगाता है। इतनी बड़ी संख्या में नेपाल की सड़कों पर उतरे विद्रोहियों का इकट्ठा होना और हिंसक आंदोलन दर्शाता है कि योजनाबद्ध तरीके से इसे अंजाम दिया गया है। तीन दिन पहले शुरू हुए इस हिंसक तांडव में उपद्रवियों ने सांसद, मंत्री यहां तक कि प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति तक के आवास को नहीं छोड़ा। लूटपाट और आगजनी के बाद आम नागरिकों के वाहनों को आग के हवाले कर दिया।

प्रधानमंत्री के पी शर्मा ओली ने सेना से सुरक्षा की गुहार की, नेपाल सेना प्रमुख अशोक राज सिगडेल ने प्रधानमंत्री को पहले त्यागपत्र देने के लिए कहा, त्यागपत्र सौंपने के बाद ओली परिवार सहित सुरक्षा की दृष्टि से सेना की शरण में चले गए और विदेश भेजने की गुहार की। अब कहां जाएंगे ये जानकारी सार्वजनिक नहीं हो पाई है।
आखिर भारी विरोध प्रदर्शनों के बीच काठमांडू क्यों जल रहा है?

नेपाल में इस अराजक और हिंसक तांडव के पीछे कारण क्या रहा यह जानना बड़ा जरूरी है। कुछ हफ़्ते पहले, नेपाली सरकार ने फ़ेसबुक, व्हाट्सएप, इंस्टाग्राम, एक्स और यूट्यूब जैसे प्रमुख सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म सहित 26 सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म पर प्रतिबंध लगा दिया था, क्योंकि ये प्लेटफ़ॉर्म एक निश्चित समय सीमा के भीतर अधिकारियों के साथ पंजीकरण कराने में विफल रहे थे। यह आरोप भी लगाया गया कि शुक्रवार को सोशल मीडिया पर लगाए गए प्रतिबंध ने मौलिक अधिकारों और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उल्लंघन किया है। नेपाल सरकार का Gen-z सोशल मीडिया को विनियमित करने का व्यापक प्रयास, जनता खासकर युवा नागरिकों को रास नहीं आया। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स को उचित रूप से प्रबंधित, जिम्मेदार और जवाबदेह बनाने के उद्देश्य से एक विधेयक पेश करने के उसके प्रयास ने इस आंदोलन को देशव्यापी बना दिया। इस औचक निर्णय ने विरोधी पक्ष को एक ऐसा मुद्दा दे दिया जिससे यह आग भड़की। आरोप है कि यह सेंसरशिप और ऑनलाइन विरोध जताने वाले सरकार विरोधियों को दंडित करने का एक साधन है।

काठमांडू में विरोध प्रदर्शनों के दौरान हुई मौतों के बाद लोग बेहद गुस्से में हैं। स्कूल बंद हैं, बाज़ार बंद हैं और नेपालगंज में भी प्रदर्शन ज़ोरों पर हैं, स्थिति तनावपूर्ण है। नेपाल सेना ने आज देशव्यापी प्रतिबंधात्मक आदेश लागू कर दिए हैं। विरोध प्रदर्शन की आड़ में किसी भी संभावित हिंसा को रोकने के लिए, इन प्रतिबंधात्मक आदेशों के बाद 11 सितंबर सुबह 6 बजे तक कर्फ्यू रहेगा।

नेपाल सेना प्रमुख अशोक राज सिगडेल ने मंगलवार आधी रात को सैन्य मुख्यालय जंगी अड्डा में Gen-z प्रतिनिधि से मुलाकात की। नेपाली सेना के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार, यह Gen-z के विचारों को समझने का एक प्रारंभिक प्रयास है। सेना ने स्थिति का अनुचित लाभ उठाने के आरोप में 26 लोगों को गिरफ्तार किया है।
नेपाली सेना ने बुधवार से देशव्यापी कर्फ्यू की घोषणा की है। आगे की अशांति को रोकने के लिए, अधिकारियों ने निवासियों को “अत्यंत आवश्यक” होने तक घर के अंदर रहने के आदेश जारी किए हैं। नेपाली सेना ने राष्ट्रव्यापी सुरक्षा अभियानों की कमान संभाल ली है और काठमांडू, ललितपुर और भक्तरपुर शहरों सहित देश भर के कई इलाकों में प्रतिबंध लगा दिए हैं।
सोमवार को संसद भवन के आसपास हुई रैली के दौरान प्रदर्शनकारियों पर पुलिस द्वारा गोलीबारी के बाद, स्थिति बिगड़ गई और प्रदर्शनकारियों ने प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली के निजी आवास, राष्ट्रपति, गृह मंत्री और पूर्व प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा के आवासों को आग लगा दी। प्रदर्शनकारियों ने राष्ट्रपति भवन, प्रधानमंत्री के आधिकारिक आवास और प्रधानमंत्री तथा कई मंत्रालयों के कार्यालयों वाली इमारत सिंह द्वार को भी आग के हवाले कर दिया।
नेपाली सेना प्रमुख अशोक राज सिगडेल ने एक वीडियो संदेश में प्रदर्शनकारियों से बातचीत के लिए आगे आने का आग्रह करते हुए जान-माल के और नुकसान को रोकने और प्रदर्शन बंद करने का आग्रह किया।

राष्ट्रपति राम चंद्र पौडेल, जो औपचारिक रूप से राष्ट्राध्यक्ष थे, ने प्रदर्शनकारियों से अपील की कि वे तनाव को और न बढ़ाएँ और शांतिपूर्ण समाधान के लिए बातचीत में शामिल हों।नेपाल के पूर्व प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा और उनकी पत्नी, विदेश मंत्री आरज़ू राणा देउबा पर मंगलवार को प्रदर्शनकारियों ने हमला किया। काठमांडू के बुदानिलकांठा स्थित उनके आवास में तोड़फोड़ की गई।

नेपाल में अशांति जारी रहने के कारण, उत्तर प्रदेश के सीमावर्ती जिलों में भी इस आंदोलन का असर दिखाई पड़ा। प्रधानमंत्री ओली ने दूसरे दिन भी भारी विरोध प्रदर्शनों के बीच इस्तीफा दे दिया था, जबकि सोमवार देर रात सोशल मीडिया पर प्रतिबंध हटा लिया गया। एक दिन पहले हिंसा में 19 लोगों की मौत हो गई थी। एक आंदोलन जो सोशल मीडिया पर सरकारी प्रतिबंध के खिलाफ शुरू हुआ था, एक बड़े अभियान में बदल गया, जो केपी शर्मा ओली सरकार और देश के राजनीतिक अभिजात वर्ग की कथित भ्रष्टाचार और आम लोगों के प्रति उदासीनता को लेकर बढ़ती सार्वजनिक आलोचना को दर्शाता है।
प्रदर्शनकारियों द्वारा परिसर के अंदर घरों को जलाने के बाद, सेना ने सरकार के मुख्य सचिवालय भवन, सिंह दरबार को भी अपने नियंत्रण में ले लिया। सेना ने परिसर में प्रवेश किया और प्रदर्शनकारियों को बाहर निकालने के बाद नियंत्रण अपने हाथ में ले लिया।आंदोलनकारियों के एक समूह द्वारा यहाँ पवित्र पशुपतिनाथ मंदिर के द्वार को तोड़ने की कोशिश के बाद भी सेना ने हस्तक्षेप किया।
सेना द्वारा अंतरिम प्रधानमंत्री के रूप में किसको नामित किया जाएगा यह तो समय ही बताएगा, लेकिन नेपाल की पूर्व मुख्य न्यायाधीश सुशीला कार्की के नाम पर आम जनता की सहमति बनती जरूर दिखाई दे रही है।
नेपाल में हुए इस हिंसक प्रदर्शन ने भारत सरकार की चिंता जरूर बढ़ा दी है। भारत के चारों ओर पड़ोसी देशों में हो रहे हिंसक आंदोलनों का भारत पर कितना असर पड़ेगा, यह तो वक्त ही बताएगा। भारत में भी विरोधी ताकतें पिछले कई वर्षों से सरकार की हर नीति और निर्णय को लेकर विरोध प्रदर्शन और आंदोलन का रास्ता अपनाए हुए हैं। हालांकि ये प्रदर्शन देशव्यापी नहीं बन पाए, एक सीमित क्षेत्र तक ही सिमट के रह गए। किसान आंदोलन हो या CAA-NRC आंदोलन, EVM हैकिंग का या वोट चोरी का आरोप। विपक्ष का केवल एक ही उद्देश्य दिखाई देता है किसी भी तरह भाजपा से सत्ता हथियाई जाए, हालांकि अभी तक के सभी प्रयास विफल हुए हैं, और देशव्यापी आंदोलन के रूप में कोई भी सफलता हासिल नहीं हुई है।
पिछले 2024 के चुनाव में कांग्रेस ने घोषणा की थी कि एन डी ए सरकार 6 महीने में गिर जाएगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ, उपराष्ट्रपति चुनाव से पहले भी ऐसी ही घोषणा की थी कि 9 सितंबर के बाद सरकार गिर जाएगी। और तो और कांग्रेस सुप्रीमो ने तो यहां तक कह दिया था कि नरेंद्र मोदी को युवा डंडों से पीटेगा।
ऐसी मानसिकता से यही पता चलता है कि येन केन प्रकारेन सत्ता मिल जाए, क्योंकि सत्ता से दूर रहते हुए एक पखवाड़ा बीत चुका है, अब सत्ता से दूरी बर्दाश्त नहीं हो रही। वहीं भारत विरोधी विदेशी ताकतें भी भारत की बढ़ती ताकत से चिंतित हैं और चाहती हैं कि भारत में उनके चहेतों का सत्ता पर कब्जा हो जाए। वर्तमान परिस्थिति में सरकार को बड़ा सचेत रहना होगा, और किसी भी निर्णय से होने वाले प्रभाव के दोष गुणों पर गहन चिंतन के बाद ही उसे लागू करना होगा। हालांकि भाजपा का जो थिंक टैंक है वो सभी पहलुओं का अध्ययन करने के बाद ही किसी निर्णय को लागू करने की सलाह देता है, फिर भी भारत सरकार को सतर्क रहने की आवश्यकता है। न्यूज़ डेस्क






