आगरा: 14 सितंबर 2025
आगरा की पहचान ताज महल के अलावा आलू और पेठा से भी है!! प्रोपर मार्केटिंग के अभाव में आगरा न फाउंड्री के उत्पाद, न ग्लासवेयर, न ही लैदर प्रोडक्ट्स, न पेठा दालमोंठ और न ही किंग ऑफ वेजिटेबल्स आलू को बाजारी बुलंदियों पर ले जा सका है।
फाइव स्टार होटल्स को आलू की डिशेज के अलग से काउंटर्स लगाने चाहिए। इतना, सिंपल, अफोर्डेबल, पौष्टिक, मिलनसार, यानी एडजस्टिंग कृषि उत्पाद, क्यों सरकारी बेरुखी का शिकार है?बरसों से हम सुन रहे हैं कि भारत की राष्ट्रीय सब्ज़ी कद्दू है। लेकिन ये एक भ्रम है। कद्दू सिर्फ़ अफ़वाह के भरोसे गद्दी पर बैठा हुआ है।
ज़मीनी हक़ीक़त देखें। कौन है जो सचमुच भारतीय रसोई को रोज़ाना सहारा देता है? कौन है जो बंगाल के आलू–पोस्तो से लेकर पंजाब के आलू–परांठे तक, बनारस की टिक्की से लेकर मुंबई के वडा पाव तक, हर थाली को जोड़ता है? जवाब साफ़ है: आलू।आगरा वासियों को साल के 365 दिनों में 350 दिन आलू सब्जी खिला लो। चीन के बाद भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा आलू उत्पादक देश है। वाकई, “आलू–परांठा, समोसा, दम आलू, आलू–गोभी—इनके बिना भारतीय थाली अधूरी है।
आलू जाति, वर्ग और क्षेत्र की सीमाओं से ऊपर उठकर सबका साथी है—सच्चा लोकतांत्रिक आहार, हमारी संस्कृति की खाने वाली डोर। आलू सिर्फ एक फसल नहीं, बल्कि हज़ारों किसानों की रोज़ी-रोटी है,” कहती हैं होम मेकर पद्मिनी अय्यर। मगर ये साधारण सा आलू, जिसे यूरोप में कभी “शैतान का सेब” कहा जाता था, आज भी अपने किसानों को वो इज़्ज़त और मुनाफा नहीं दिला पा रहा, जिसका वो हकदार है।
2024-25 में भारत ने 6 करोड़ टन से ज़्यादा आलू पैदा किए, जिसमें आगरा का बड़ा हिस्सा है। फिर भी, बाज़ार की समस्याएं और सुविधाओं की कमी इसे मुश्किल बना रही हैं। लेकिन अब आगरा में एक नया अंतरराष्ट्रीय रिसर्च सेंटर शुरू होने से उम्मीद की किरण जागी है।आलू की कहानी डर को जीतने की कहानी है, जो यूरोप से लेकर आगरा तक गूंजती है।

दक्षिण अमेरिका के एंडीज पहाड़ों से शुरू हुआ ये आलू 1570 में स्पेनिश सिपाहियों के ज़रिए यूरोप पहुंचा। ये नाइटशेड परिवार का हिस्सा था, जिसमें ज़हरीले पौधे जैसे डेडली नाइटशेड शामिल थे, इसलिए लोग इसे ज़हरीला समझते थे। इसकी जड़ें ज़मीन के नीचे उगती थीं, जिसे लोग शैतान का इलाका मानते थे, और इसके छोटे हरे टमाटर जैसे फल वाकई ज़हरीले थे। फ्रांस, जर्मनी और ब्रिटेन में इसे “शैतान का सेब” कहा गया, जादू-टोने से जोड़ा गया और कुछ जगहों पर इसकी खेती पर पाबंदी लगा दी गई।
कैथोलिक चर्च ने तो ये भी कहा कि बाइबिल में इसका ज़िक्र नहीं, यानी ये खुदा की मर्ज़ी के खिलाफ है। फ्रांस, खासकर पेरिस, में आलू को इज़्ज़त दिलाने की जंग लड़ी गई। 18वीं सदी तक इसे जानवरों का चारा समझा जाता था। फिर आए एंटोनी-ऑगस्टिन पार्मेंटियर, एक दवा-साज़ जो सात साल के जंग (1756–1763) में प्रूसिया की कैद में आलू खाकर बचे। फ्रांस लौटकर उन्होंने आलू को अकाल से लड़ने वाली फसल बताया। उन्होंने खेतों में सिपाही तैनात किए ताकि लोग चोरी करें और आलू को आज़माएं। 1772 में उन्हें इसके लिए शाही इनाम मिला।
1785 में सब बदल गया। पार्मेंटियर ने पेरिस में राजा लुई सोलहवें और रानी मैरी एंटोनेट के लिए सिर्फ आलू का दावत दी। राजा ने कहा, “एक दिन फ्रांस तुम्हें गरीबों की रोटी देने के लिए शुक्रिया कहेगा।” वर्साय के बागों में आलू उगाए गए, और रानी ने इसके फूल अपने बालों में सजाए। *ले बॉन जार्डिनियर* किताब ने इसे सबसे मशहूर सब्ज़ी बताया, और “शैतान का सेब” का डर खत्म हुआ। 1789 की फ्रांसीसी क्रांति तक आलू गरीबों का खाना बन गया।
आज भी पेरिस के कब्रिस्तान में पार्मेंटियर की कब्र पर लोग आलू चढ़ाते हैं।भारत में आलू 17वीं सदी में पुर्तगाली व्यापारियों के ज़रिए आया, लेकिन आज़ादी के बाद ये मशहूर हुआ। आगरा, जहां की मिट्टी और ठंडी सर्दियां रबी की फसल (अक्टूबर-मार्च) के लिए बेहतरीन हैं, आज सबसे बड़ा आलू उत्पादक है। यहां लगभग 71,000 हेक्टेयर पर आलू उगता है।
आलू की किस्में जैसे कुफरी बहार (मीठा), कुफरी ज्योति (बीमारी-रोधी), कुफरी पुखराज (पीला, ज़्यादा पैदावार), और चिप्सोना (चिप्स के लिए) मशहूर हैं।आगरा के आलू की क्वालिटी शानदार है—एकसमान आकार, सख्त बनावट, और ज़्यादा स्टार्च। ये खाने और चिप्स बनाने, दोनों के लिए बेहतरीन हैं।
अब पेरू का इंटरनेशनल पोटैटो सेंटर (CIP) आगरा में साउथ एशिया रीजनल सेंटर (CSARC) खोल रहा है। जून 2025 में ₹111.5 करोड़ के साथ मंज़ूरी मिली, ये सेंटर मौसम-रोधी आलू, ज़्यादा पैदावार, और किसानों की ट्रेनिंग देगा। ये आलू की क्वालिटी, स्टोरेज, और निर्यात बढ़ाएगा, जिससे आगरा वैश्विक रिसर्च हब बनेगा।जैसे पार्मेंटियर ने पेरिस में किया, ये सेंटर आलू को नई इज़्ज़त दे सकता है। आगरा के किसानों के लिए ये एक नया मौका है।
बृज खंडेलवाल द्वारा






