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हर चमकदार वस्तु उत्पादक नहीं होती! सोने की दीवानगी: लॉकर में कैद अर्थ तंत्र, सोने की चिड़िया पिंजरे में…….

आगरा: मंगलवार 21 अक्टूबर 2025

मीडिया में लाइन से विज्ञापनों की कार्पेट बॉम्बिंग, ज्वेलरी शॉप्स में देर रात तक खरीदारी, रिकॉर्ड सेल के दावे, कीमतों में बेहिसाब इजाफा, भारत को सोने की चिड़िया बनाने को बेताब हैं! लेकिन ये चमक, ये दमक, आर्थिक कमजोरी, वैश्विक असंतुलन, भरोसे में सेंध की महक है। दया, कुछ तो गड़बड़ है!!दीवाली 2025 भारत में सोने की ऐसी लहर लेकर आई है कि सारे पुराने रिकॉर्ड टूट गए।

धनतेरस के दिन ही करीब 60 हज़ार करोड़ रुपये का सोना-चांदी बिका — पिछले साल से 25% ज़्यादा! हालाँकि मात्रा में कुछ कमी रही, पर कीमतें आसमान छू गईं — सोना 1.15 से 1.32 लाख रुपये प्रति 10 ग्राम और चांदी 1.57 से 1.72 लाख रुपये किलो तक पहुंच गई।देशभर में 30 से 50 टन सोना खरीदा गया। इस बार सिक्कों और बार्स की मांग बढ़ी, क्योंकि गहनों की खरीद कुछ कम हुई। साफ है, अनिश्चित दौर में लोग फिर उसी पुराने “सेफ इन्वेस्टमेंट” की तरफ लौट रहे हैं — सोना। दुनिया भर में महंगाई, अमेरिका-चीन की तनातनी और मध्य-पूर्व में तनाव ने लोगों के मन में डर बैठा दिया है।

ऐसे वक़्त में सोना फिर भरोसे की निशानी बन गया है।पर असल बात ये है कि सोना एक अनुत्पादक संपत्ति है — यह न ब्याज देता है, न अर्थव्यवस्था को बढ़ाता है। बस तिजोरियों में पड़ा रहता है, जैसे किसी पुरानी याद की तरह।भारत के घरों और मंदिरों में करीब 25,000 टन सोना जमा है — जिसकी कीमत करीब 3 ट्रिलियन डॉलर है। सोचिए, ये रकम देश की GDP का लगभग 90% है! अगर इस सोने को किसी तरह अर्थव्यवस्था में लाया जाए, तो न जाने कितने कारखाने, सड़कें बन सकती हैं, नौकरियों के दरवाजे खुल सकते हैं।

लेकिन अफ़सोस, शादी-ब्याह के बाद ज़्यादातर गहने बैंक लॉकरों में सोते रहते हैं — बेकार, बेजान और बिना इस्तेमाल।भारत अब दुनिया का सबसे बड़ा ज्वेलरी ख़रीदार बन चुका है — चीन को पीछे छोड़कर। ये आयात से आता है, यानी हमारी विदेशी मुद्रा पर बोझ। रुपया दबाव में आता है, व्यापार घाटा बढ़ता है। भले ही RBI के पास 700 बिलियन डॉलर का रिज़र्व है, मगर ऊंची सोने की कीमतें फिर भी अर्थव्यवस्था को हिला देती हैं।

असल में, सोने की ये दीवानगी डर से उपजती है — मंदी का डर, रुपये के गिरने का डर, या किसी निजी संकट का। शादियों में दहेज के लिए सोना ख़रीदना तो जैसे रिवाज़ बन चुका है। लेकिन इसका एक स्याह पहलू भी है — ज़्यादातर सोना काले धन से खरीदा जाता है। इस सुनहरी चमक में भ्रष्टाचार की छाया गहरी है। किसी भी लेवल पर करप्शन कम नहीं हुआ है, कितने भी पारदर्शिता के दावे किए जाएं। और बार-बार चुनाव, काले धन की मांग को स्थायी बनाते है। इस विकास के मॉडल में करप्शन इनबिल्ट, अंतर्निहित गुण है। कोई भी प्रोजेक्ट सीधे-सीधे कम से कम तीस प्रतिशत अश्वेत धन मार्केट में रिलीज करता है।

ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल की 2024 रिपोर्ट के अनुसार भारत का करप्शन परसेप्शन इंडेक्स स्कोर 39 पर अटका हुआ है, जो एशिया के सबसे भ्रष्ट देशों में गिना जाता है

कई इनकम टैक्स रेड्स में ज्वेलरी दुकानों से बेहिसाब कैश, अनकाउंटेड गोल्ड बार्स और हवाला के ज़रिए भुगतान के सबूत मिले हैं। यह बताता है कि सोना सिर्फ़ निवेश नहीं, बल्कि भ्रष्टाचार का सबसे सुरक्षित ठिकाना बन गया है — जहाँ धन भी छिपता है और हिसाब भी नहीं पूछा जाता।अगर सरकार इस चलन को बदलना चाहती है, तो लोगों को समझाना होगा कि बचत का असली रास्ता शेयर, बॉन्ड और उद्योगों में निवेश है — ताकि पैसा देश के काम आए, सिर्फ़ शोहरत के नहीं।छोटे निवेशकों को राहत, टैक्स में ढील और आसान नियम देकर ये रुझान बदला जा सकता है।

आख़िर में यही कहना है —सोने की ये दीवानगी दरअसल हमारे भरोसे की कमी का आईना है।दीवाली की रौनक के बीच हमें याद रखना चाहिए कि असली चमक नवाचार और उत्पादन में है, न कि लॉकर में सोए सोने में।अगर भारत ने इस पीली धातु से मोह छोड़ दिया, तो शायद वही दिन होगा जब ये मुल्क सचमुच सोने की चिड़िया बन जाएगा — इस बार अर्थव्यवस्था के परों से उड़ान भरते हुए।

बृज खंडेलवाल

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