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प्राइवेट सेक्टर भारत की अर्थव्यवस्था की नींव: मेक इन इंडिया और स्टार्टअप इंडिया हैं राष्ट्रीय अभियान

डिजिटल इंडिया जैसी योजनाओं ने उद्यमिता को दी है उड़ान

आगरा: 20 सितंबर 2025

मेसूर के रहने वाले 24 साल के आनंद की कहानी दिलचस्प है। गांव के स्कूल से पढ़ाई करने वाला यह युवा कभी सोच भी नहीं सकता था कि एक दिन वह अमेरिकी क्लाइंट्स को सॉफ्टवेयर सॉल्युशन देगा। लेकिन बेंगलुरु की एक आईटी कंपनी ने उसे यह अवसर दिया। उसे रेलवे की सरकारी नौकरी की कतार में खड़ा नहीं होना पड़ा, क्योंकि निजी सेक्टर ने उसकी काबिलियत पहचान ली। आनंद जैसे लाखों युवाओं की तक़दीर बदलना ही प्राइवेट सेक्टर की असली ताकत है।

लोग कहते हैं कि अर्थव्यवस्था आंकड़ों से चलती है। लेकिन हकीकत यह है कि यह लोगों के सपनों और संघर्षों से भी चलती है। लंबे समय तक हमने देखा कि पब्लिक सेक्टर बड़े-बड़े वादों और कारखानों की दीवारों में कैद होकर रह गया। एयरलाइंस उड़ती थीं, लेकिन घाटे में। फैक्ट्रियां लगती थीं, लेकिन गैर-ज़रूरी लालफीताशाही और भ्रष्टाचार ने उन्हें बोझ बना दिया।

हम सबने देखा कि टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज़ (TCS) और इंफोसिस जैसी कंपनियों ने न सिर्फ अरबों का कारोबार किया, बल्कि लाखों साधारण परिवारों के बच्चों को ऊंचे सपनों की उड़ान दी। किसी छोटे कस्बे का छात्र आज अमेरिकी सिलिकॉन वैली या लंदन की फाइनेंशियल कंपनियों में काम कर पा रहा है। सबसे बड़ी क्रांति मोबाइल और इंटरनेट ने की। दशकों तक गांव में बैंक खाता खुलवाना तक मुश्किल था। लेकिन आज कोई किसान अपने स्मार्टफोन से बीज खरीद सकता है, मौसम का हाल देख सकता है और तुरंत सरकारी सब्सिडी का पैसा चेक कर सकता है।

यह सब निजी क्षेत्र के नवाचार और निवेश से संभव हुआ। रिलायंस जियो की सस्ती डेटा दरों ने इंटरनेट को हर चाय की दुकान तक पहुंचा दिया। यही बदलाव स्टार्टअप्स में भी दिखाई देता है। फ्लिपकार्ट की कहानी सब जानते हैं—दो दोस्तों ने किराये के अपार्टमेंट से किताबें बेचना शुरू किया और आज वे ई-कॉमर्स की पहचान बन गए। ओला ने टैक्सी बुलाने को फोन घुमाने की मशक्कत से निकालकर ऐप की एक *क्लिक* में बदल दिया।

सोचिए, अगर ये उद्यम ना होते तो हमारी रोजमर्रा की ज़िंदगी कितनी अलग होती। सरकारी नीतियों ने भी इस सोच को बल दिया। मेक इन इंडिया और स्टार्टअप इंडिया ने निजी सपनों को राष्ट्रीय अभियान बना दिया।

अब रक्षा जैसे संवेदनशील क्षेत्रों तक में निजी निवेश ने नई संभावनाएं पैदा की हैं। और हां, आंकड़े झूठ नहीं बोलते। 2015 में भारत में डॉलर मिलियनेयर घराने 2.3 लाख थे। 2025 आते-आते यह संख्या 8.7 लाख से ऊपर पहुंच गई। इसका मतलब यह नहीं कि सिर्फ अमीर और अमीर हो रहे हैं, बल्कि यह भी है कि ऊंचे सपने देखने वालों के पास अवसर बढ़ रहे हैं। क्योंकि सच यह है कि भारत का भविष्य सिर्फ़ आंकड़ों या योजनाओं के पन्नों में नहीं बसा है। यह बसा है आनंद जैसे करोड़ों युवाओं की आंखों में, जो अपने सपनों को हकीकत में बदलना चाहते हैं। उनके लिए निजी सेक्टर सिर्फ एक *इंजन* नहीं है, बल्कि वह लौ है जो आने वाले दशक में भारत को दुनिया के शीर्ष पर ले जाने का हौसला देती है।

आज़ादी के बाद से लेकर नब्बे के दशक तक यह धारणा रही कि राष्ट्र निर्माण का भार केवल पब्लिक सेक्टर के कंधों पर है। बड़े स्टील प्लांट, हैवी इलेक्ट्रिकल्स की फैक्ट्रियां, एयरलाइंस और टेलीकॉम सब सरकारी शिकंजे में रहे और कमांडिंग हाइट्स का जुमला चल निकला। सोवियत मॉडल से प्रेरित इस ढांचे में योजनाएं बनती थीं, निवेश होता था, पर नतीजा घाटे और भ्रष्टाचार के रूप में सामने आता था।

फिर आया 1991 का मोड़, जब विदेशी मुद्रा भंडार लगभग खत्म हो चुका था और भारत को सोना गिरवी रखना पड़ा। आर्थिक संकट ने देश को मजबूर किया कि वह जकड़नों को तोड़े। उसी समय पी.वी. नरसिम्हा राव और वित्त मंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने इतिहास बदल देने वाला कदम उठाया। लाइसेंस-राज का ताला टूटा, विदेशी निवेश के दरवाजे खुले और निजी उद्यमों को सांस लेने का मौका मिला। यहीं से भारत ने नई गति पकड़ी।

2014 में नरेंद्र मोदी सरकार के आने के बाद निजी क्षेत्र को सहयोगी से कप्तान बना दिया गया। रक्षा जैसे संवेदनशील क्षेत्रों तक में प्राइवेट सेक्टर का प्रवेश हुआ। मेक इन इंडिया, स्टार्टअप इंडिया और डिजिटल इंडिया जैसी योजनाओं ने उद्यमिता की राह और चौड़ी की।

सरकारी दखल घटा, निजी हाथों में जिम्मेदारी बढ़ी और अर्थव्यवस्था ने नई छलांग लगाई। आंकड़े इस परिवर्तन के गवाह हैं। 2015 में भारत में डॉलर मिलियनेयर घरानों की संख्या लगभग 2.36 लाख थी। दस साल बाद, 2025 में, यह बढ़कर 8.71 लाख हो गई। यानी चार गुना वृद्धि। यह महज अमीरों की गिनती नहीं है, बल्कि इस बात का संकेत है कि निजी अवसरों की खुली दुनिया ने नई समृद्धि और नई आकांक्षाओं को जन्म दिया है।भारत का भविष्य अब इस बात पर निर्भर है कि हम किसके हाथों में अपनी अर्थव्यवस्था सौंपते हैं।

बृज खंडेलवाल द्वारा

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