मथुरा: बुधवार 15 अक्टूबर 2025
कभी जिनके जीवन से दीपावली की रौशनी छिन गई थी, आज वही माताएँ वृंदावन के गोपीनाथ मंदिर में मुस्कान और उल्लास से जगमगा उठीं। बुधवार की शाम, जब सैकड़ों विधवा माताएँ सफेद साड़ियों में सजीं, उनके चेहरे दीयों की लौ में ऐसे चमक रहे थे, मानो वर्षों का अंधकार मिट गया हो।
वृंदावन के आश्रमों में रहने वाली ये माताएँ—अधिकतर पश्चिम बंगाल से आईं—कभी समाज द्वारा “अशुभ” मानी जाती थीं। त्यौहारों से उनका कोई नाता नहीं रखा जाता था। लेकिन इस दीपावली पर, सुलभ इंटरनेशनल के प्रयासों ने सब कुछ बदल दिया। गोपीनाथ मंदिर प्रेम, सम्मान और अपनत्व का केंद्र बन गया।सुलभ इंटरनेशनल की कार्यकारी संयोजक श्रीमती नित्या पाठक ने बताया, “हमारा उद्देश्य इन माताओं को समाज की मुख्य धारा में शामिल करना है। अब इन्हें छिपाने की नहीं, सम्मान से जीने की जरूरत है।”

उनकी आवाज में संवेदना थी, और आँखों में गर्व की चमक।जैसे-जैसे शाम ढली, मंदिर में दीपों की कतारें टिमटिमाने लगीं। हर दीया, हर मुस्कान एक नई कहानी कह रहा था—दर्द से मुक्ति की, अपनेपन की, और उस सशक्तिकरण की जो करुणा से जन्म लेता है।माँ देवी घोष ने दीयों की रोशनी में धीमी मुस्कान के साथ कहा, “पहले हम दीपावली बस दूर से देखते थे। अब लगता है जैसे जीवन खुद हमारे पास लौट आया है।” उनकी आँखों में खुशी के आँसू थे, और उस भाव में एक पूरी पीढ़ी की मुक्ति छिपी थी।
यह परिवर्तन अचानक नहीं आया। 2012 से, सुलभ आंदोलन के संस्थापक स्वर्गीय डॉ. बिंदेश्वर पाठक की करुणामयी दृष्टि ने वृंदावन और वाराणसी की सैकड़ों विधवा माताओं को न केवल आश्रय दिया, बल्कि सम्मान और पहचान भी लौटाई। संगठन इन माताओं को स्वास्थ्य सुविधा, प्रशिक्षण, और आर्थिक सहयोग प्रदान करता है—ताकि वे जीवन के अंतिम पड़ाव में निर्भर नहीं, स्वाभिमानी बन सकें।
आज, जब सर्वोच्च न्यायालय के मार्गदर्शन में यह पहल आगे बढ़ रही है, वृंदावन की गलियाँ एक नई कहानी कह रही हैं—जहाँ त्याग और तिरस्कार की जगह अब स्नेह और समावेश ने ले ली है।जैसे ही मंदिर में जलते दीयों की रौशनी ने रात के अंधकार को चीर दिया, ऐसा लगा मानो इन माताओं के मन भी उसी रोशनी में नहा गए हों। अब वे सिर्फ “विधवा” नहीं हैं—वे जीवन, आशा और आत्मसम्मान की जीवित प्रतीक हैं।

बृज खंडेलवाल द्वारा






