आगरा: गुरुवार 16 अक्टूबर 2025
बच्चों की हिंदी सीखने की शुरुआत हिंदी अक्षरों की किताब से होती है। अक्सर बचपन में हमने ‘ठ से ठठेरा’ सुना तो है, बच्चे पढ़ते भी हैं, लेकिन क्या बच्चों ने देखा भी है ठठेरा कौन होता है, कभी यह दिखाने की कोशिश की, कि आखिर वो लोग होते कौन हैं?
कभी आगरा, मेरठ या जयपुर जाएं, तो वहां पता करें, ठठेरे का काम कहां होता है, फिर बच्चों को वहां लेकर जाएं और उन्हें दिखाएं ठठेरा क्या काम करता है।
हम बच्चों को दुनिया भर में घुमाने ले जाते हैं, लेकिन वो किताब में जो पढ़ते हैं दिखाने की कोशिश नहीं की। बच्चे ने “ठ” से “ठठेरा” पढ़ा तो है, पर देखा नहीं है। उसे दिखाया जाए कि आखिर वो दिखता कैसा है!
आज भी जयपुर में ठठेरों का रास्ता नाम से मशहूर एक गली हमारी ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहर को संजोए हुए है। इस गली में तांबे, पीतल और टिन से बर्तन, कलश, घंटियां और कई उपकरण बनाने वाले पारंपरिक कारीगर, जिन्हें ठठेरे कहा जाता है, अपनी कला को पीढ़ी-दर-पीढ़ी जीवित रखे हुए हैं।
न्यूज़ डेस्क







