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क्या SIR में बीएलओ की पारदर्शिता का कोई मानक निर्धारित किया है: या क्रॉस चेकिंग की व्यवस्था की गई है?

बड़ा शोर सुनते थे पहलू में दिल का……..

आगरा: शनिवार 06 नवंबर 2025

राष्ट्रीय स्तर पर चारों ओर SIR का हल्ला हो रहा है। चुनाव आयोग बड़ी निष्पक्षता, निर्भीकता और तन्मयता से SIR के कार्य को सम्पन्न कराने में जुटा हुआ है।

राजनीतिक पार्टियां अपने अपने स्तर से समीक्षा बैठक कर रही हैं। लेकिन पार्टी के सांसद, विधायक, संगठन के पदाधिकारी, यहां तक कि पार्षद कहीं भी अपने क्षेत्र में दिखाई नहीं दे रहे। कहा तो ये जा रहा है हर बीएलओ के साथ बीएलए नियुक्त किए गए हैं, लेकिन धरातल पर देखा जाए तो कहीं भी बीएलए दिखाई नहीं दिए।

जीओ 9 की टीम ने जब आगरा के विभिन्न क्षेत्रों में सर्वे किया तो पता चला कि कहीं भी भाजपा के पार्षद या बीएलए नजर नहीं आए, विधायक और सांसद की तो बात ही छोड़ दीजिए। ये अंध विश्वास ही था जो 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा 244 पर सिमट कर रह गई।

उत्तर प्रदेश की सबसे बड़ी पार्टी भाजपा के पदाधिकारी शुतुरमुर्गीय पद्धति से बालू में मुंह घुसाए, कार्यालय में बैठ कर समीक्षा करने में लगे हुए हैं। उन्हें सब कुछ ठीक दिखाई दे रहा है, समझ बैठे थे कि हाई कमान को जो भी रिपोर्ट वो देंगे सच मान ली जाएगी। शायद वो भूल गए कि प्रदेश के शीर्ष स्तर पर बैठे प्रदेश के मुख्यमंत्री की पैनी नजर उन पर थी, यही कारण रहा जो उनको सभी मंत्री, विधायक और संगठन के पदाधिकारियों को ये निर्देश देना पड़ा कि बाहर निकलें और धरातल पर क्षेत्र में हो रहे SIR की प्रगति की समीक्षा करें और रिपोर्ट दें।

उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने विशेष प्रगाढ़ पुनरीक्षण (SIR) कार्य प्रगति की समीक्षा करते हुए कहा कि कोई भी पात्र व्यक्ति/नागरिक मतदाता सूची से छूटने न पाए। पूरी पारदर्शिता के साथ शुद्ध मतदाता सूची तैयार की जाए। उन्होंने कहा कि ऐसे मतदाता जिनकी मृत्यु हो चुकी है, शिफ्टेड मतदाता अथवा अपात्र का नाम मतदाता सूची से हटाया जाए। उन्होंने कहा कि यह भी सुनिश्चित करे कि कोई भी घुसपैठिया किसी भी हाल में मतदाता सूची मे शामिल न हो सके।

हालांकि चुनाव आयोग ने 4 दिसंबर की अंतिम तिथि को एक सप्ताह आगे बढ़ाकर 11 दिसम्बर अंतिम तिथि निर्धारित कर दी। ये बीएलओ के लिए राहत की बात जरूर हो सकती है लेकिन मतदाता इससे संतुष्ट नहीं है। सरकारी पोर्टल पर जब देखा गया तो दस दिन पहले बीएलओ को दिए गए फॉर्म एक सप्ताह में भी अपलोड नहीं हुए थे।

एक मतदाता ने बताया कि बीएलओ उन्हें फॉर्म की केवल एक ही कॉपी देकर गया, जब उनसे दूसरी कॉपी के बारे में पूछा गया तो कहा उसे एक ही कॉपी मिली है, वापसी पर फॉर्म लेते समय मतदाता को हस्ताक्षर की हुई कोई भी प्रति नहीं दी गई, मतदाता समझदार था, तत्काल फॉर्म की फोटो कॉपी कराकर बीएलओ के हस्ताक्षर कराए, जिसका टीम को प्रमाण भी दिया।

अब प्रश्न उठता है कि ऐसे कितने मतदाताओं को उस बीएलओ ने प्रमाणिकता के लिए हस्ताक्षर युक्त कॉपी दी होगी। चूंकि फॉर्म अपलोड होने के बाद कोई क्रॉस चेकिंग का प्रावधान नहीं है, ऐसे में यदि मतदाता का सूची में नाम नहीं होगा तो वह क्या प्रमाण दे पाएगा।

यह भी जांच का विषय हो सकता है कि ऐसे कितने बीएलओ हैं जिन्होंने प्रमाणिकता के लिए हस्ताक्षर युक्त कॉपी मतदाता को नहीं दी है। ये बड़ा गंभीर विषय है जिस पर जिला निर्वाचन अधिकारी को विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है।

विशेष संवाददाता

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